धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
Whosoever gives incense, prasad and performs arti to Lord Shiva, with love and devotion, enjoys substance happiness and spiritual bliss in this earth and hereafter ascends towards the abode of shiv chalisa in hindi Lord Shiva. The poet prays that Lord Shiva taken off the suffering of all and grants them eternal bliss.
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुख हरहु हमारी॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥